ग़ालिब...

ईमाँ मुझे रोके है तो, खींचे है मुझे कुफ्र,

काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे !!


सालों से है इक हसरत सी,

जाने क्या है ये गफलत सी,

की तन्हाई में भीग जाएँ पलकें,

सोंधे आंसुओं से ये समा महके,

और आये "कोई" इस वीराने में पास ,

लगा दे इन पलकों पर कोई मरहम ख़ास ,

दे अपनी बाहों का बिस्तर,

चुन ले इस दिल के नश्तर,

पर, खुद से ही शायद ये गुफ्त -ए -गू सी है,

छोटी सी ये इक आरजू सी है,

जाने क्यों पूरी नहीं होती,

जो सालों से है ये इक हसरत सी,

जाने क्या है ये गफलत सी ...

-मनीष ठाकुर

Faiz Says...

Aaye kuchch abr, kuchch sharaab aaye,

us ke baad aaye jo aazaab aaye,

kar rahe thhey gham-e-jahana ka hisaab,

aaj tum yaad be-hisaab aaye...